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ते आ॒चर॑न्ती॒ सम॑नेव॒ योषा॑ मा॒तेव॑ पु॒त्रं बि॑भृतामु॒पस्थे॑। अप॒ शत्रू॑न्विध्यतां संविदा॒ने आर्त्नी॑ इ॒मे वि॑ष्फु॒रन्ती॑ अ॒मित्रा॑न् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te ācarantī samaneva yoṣā māteva putram bibhṛtām upasthe | apa śatrūn vidhyatāṁ saṁvidāne ārtnī ime viṣphurantī amitrān ||

पद पाठ

ते इति॑। आ॒चर॑न्ती॒ इत्या॒ऽचर॑न्ती। सम॑नाऽइव। योषा॑। मा॒ताऽइ॑व। पु॒त्रम्। बि॒भृ॒ता॒म्। उ॒पऽस्थे॑। अप॑। शत्रू॑न्। वि॒ध्य॒ता॒म्। सं॒वि॒दा॒ने इति॑ स॒म्ऽवि॒दा॒ने। आर्त्नी॑ इति॑। इ॒मे इति॑। वि॒स्फु॒रन्ती॒ इति॑ वि॒ऽस्फु॒रन्ती॑। अ॒मित्रा॑न् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:75» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे वीर किनसे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीरपुरुषो ! (ते) वे दोनों (इमे) ये (संविदाने) प्रतिज्ञा पालनेवालियों के समान वा (अमित्रान्) शत्रुजनों को (विष्फुरन्ती) कंपाती (आर्त्नी) वेग से जाती और (आचरन्ती) सब ओर से प्रिय आचरण करती हुई (योषा) पत्नी स्त्री जैसे (समनेव) समान मनवाली, वैसे वा (पुत्रम्) पुत्र को जैसे (मातेव) माता, वैसे (उपस्थे) समीप में विजय को (बिभृताम्) धारण करें और (शत्रून्) शत्रुजनों को (अप, विध्यताम्) पीटें ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे वीरजनो ! जैसे समान प्रीति की सेवनेवाली पत्नी पति को तथा माता पुत्र को निरन्तर सुखी करती है, वैसे शस्त्र और अस्त्रों से शत्रुओं को निवारो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते वीराः केभ्यः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे वीरपुरुषास्ते इमे संविदाने अमित्रान् विष्फुरन्ती आर्त्नी आचरन्ती योषा समनेव पुत्रं मातेवोपस्थे विजयं बिभृतां शत्रून् अप विध्यताम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) द्वे (आचरन्ती) समन्तात् प्रियाचरणं कुर्वन्त्यौ (समनेव) समानमना इव। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति सलोपः। (योषा) पत्न्यौ (मातेव) (पुत्रम्) (बिभृताम्) धरेताम् (उपस्थे) समीपे (अप) (शत्रून्) (विध्यताम्) ताडयतम् (संविदाने) प्रतिज्ञापालिके इव (आर्त्नी) गच्छन्त्यौ (इमे) (विष्फुरन्ती) कम्पयन्त्यौ (अमित्रान्) शत्रून् ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे वीरजना ! यथा समानप्रीतिसेविनी पत्नी पतिं माता पुत्रं वा सततं सुखयति तथा शस्त्रास्त्राभ्यां शत्रून्निवारयत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे वीरांनो ! जसे समान प्रेम करणारी पत्नी पतीला व माता पुत्राला निरंतर सुखी करते तसे शस्त्रास्त्रांनी शत्रूंचे निवारण करा. ॥ ४ ॥